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कर्म

राह अनजानी हो ग़र तो क्या

मुकाम का ख्वाब जिंदा रहना चाहिए

पत्थरों की सेक मिले जितनी भी पैरों को

आँखों में कर गुजरने की चमक होनी चाहिए।



फेहरिस्त कठिनाइयों की लंबी ग़र तो क्या

इक और कोशिश की दिल्लगी रहनी चाहिए

गिर पड़े फ़िर इक बार घुटनों पर तो क्या

हों खड़े उन्हीं पर ऐसे हौसले की धमक होनी चाहिए।


कभी लगे कोई साथ नहीं ग़र तो क्या

रास्ते को सहेजते चट्टान सा अडिग होना चाहिए

धूमिल हो भी जाए बादलों से लेकिन

फ़िर चमकते आसमान सा होना चाहिए।


और अविश्वास की आंधियां हो ग़र तो क्या

आत्मविश्वास की बूँद बन आँधियों पर बरस जाना चाहिए


टिमटिमाते तारों सा ना भी बने तो फिक्र नहीं

क्योंकि तुम्हारा उद्देश्य तो सूरज होना चाहिए।


और थक गए ग़र तो क्या

स्वाती बूंद को भी तो मोती बनने में वर्षों का तप चाहिए

बस स्मरण रहे सीप हो तुम

और कर्म तुम्हारा मोती सा होना चाहिए।


 
 
 

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