हे पार्थ! रण में हो खड़ा, गाँडीव पर अग्नि चढ़ा ।
कर दे अलग धड़ मुंड से, शत्रु जो तेरे पथ खड़ा ।
हे वीर! पावन कर्म कर, रण में तू क्षत्रिय धर्म कर ।
शत्रु विनाशक रुद्र रूपी, रणबाँकुरों का मर्म कर ।
ये युद्धभूमि धन्य है, ये मार्ग सीधा स्वर्ग का ।
तुझको मिला वरदान है, ये पल परम पुरुषार्थ का ।
है विधान युद्धभूमि का, रण में जो तू विजयी हुआ,
तेरा पराक्रम, शौर्य, यश, गूंजेगा फिर चारों दिशा ।
सौभाग्य से रणभूमि में, यमराज दर्शन दें अगर,
यम को हरा पुरुषार्थ से, तू लक्ष्य अपना प्राप्त कर ।
हे पार्थ! तू हूंकार कर, शत्रु में भय संचार कर ।
भू त्याग दे शत्रु त्वरित, ऐसा प्रचंड प्रहार कर ।
हे पार्थ! रण में हो खड़ा,गाँडीव पर अग्नि चढ़ा ।।
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