Devang Dhyani
इक वादी के निशान छोड़ आज
घर की चारदीवारी में बैठे हैं
पूछते हैं मेरे घर के उजाले
वादी के हाल कैसे हैं।
वादी पहाड़ियों, दर्रो से सजी फुलवारी है
वादी का क्या बताऊं
वादी बहुत प्यारी है।
आशाओं से सजी आंखें देखी हैं
गुड़िया के बाल को सहेजती हुई
सड़कों पर चौके- छक्के लगते जब
हंसगुल्लों की झड़ी भी लगती है।
गगन की उचाइयों को चूमती
चोटियों की पहेलियां सुलझाती घड़ी की सुई
दर्रों और नालों की ठंडक के संग
हर दिन इक नई कहानी देखी है।
वादी पहाड़ियों, दर्रो से सजी फुलवारी है
वादी का क्या बताऊं
वादी बहुत प्यारी है।
सफेद चादर को ओढ़े कभी
तो धूप की चमक सी उजला जाती है
हंसी है मेरी कश्मीरियत की
अंधेरे को भी रोशन कर जाती है।
हर सड़क की मोड़ पर
मेरे चंद लम्हात छोड़ आया हूं
तुमने ही कहा था कल मैं आधा ही हूं
आधा खुद को वादी में छोड़ आया हूं ।
अब और पूछोगे वादी के बारे में
तो बस यही मन कहता है
सरजमीं है वादी हमारी
मेरे हर रोम रोम में इसका नूर बसता है।
इस वादी का क्या बताऊं
वादी बहुत प्यारी है।
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