वीर विक्रम सिंह
यह कविता एक मासूम की जिंदगी में उसकी सोच को दर्शाती हैl जब यह आम आदमी एक फकीर से मिलता है,तो वह उस फकीर की संगत में रहकर एक बेहतर इंसान बन जाता है और सबकी भलाई में अपनी भलाई देखता हैl
एक फकीर कि जो सोच उसकी युवावस्था में होती है,इस तरह की सोच आने में एक आम आदमी की पूरी उम्र निकल जाती हैl
एक आम आदमी को अगर एक फकीर की संगत युवा अवस्था में ही मिल जाए तो उस आम आदमी की जिंदगी की तस्वीर कुछ और ही बन जाए l आम आदमी को यह फकीर, एक दोस्त में, बड़े भाई-बहन में, माता पिता में या परिवार के किसी बुजुर्ग रूप में मिल सकता हैl
एक अकेले मासूम से..
रब ने पूछा करीब से.. तुझे क्या चाहिए नसीब से...
मासूम ने कहा नज़ीर से...
मां का प्यार चाहिए... खिलौने हजार चाहिये, खेलने वाले कुछ मेरे यार चाहिये...
मुझे छोटासा ही संसार चाहियेl
फिर जब, मिले रब, पूछा क्या चाहिए...
दोस्त बेशुमार और मिलते रहे यार चाहिये,
किताबों का सार और नंबर हजार चाहिये,
अब थोड़ा-सा बड़ा मेरा संसार चाहियेl
अगली बार झट से.. कह दिया उस रब से..
माशूका का प्यार, दौलत बेशुमार,
बड़ा ओर मेरा संसार चाहिएl
अब अगली बार
अदब से....
निवेदन किया मासूम ने रब से.....
माता-पिता का दुलार, समझने वाले चार- यार, ऐ सा, मेरा संसार चाहिये l
फिर, मिले रब, ने पूछा,
कौन है संग, और क्या चाहिए....
मासूम-था रंग
एक यंग फकीर के संग
बोला,
मुस्कुराता हर इंसान चाहिए,
हमारा वतन गुलजार चाहिये, प्यारा-सा मोहब्बत वाला, संसार चाहिये l
रब ने यंग, मासूम के संग, फ़क़ीर से पुछा, तुम्हें क्या चाहिए...
बस, मुझे आपकी दुआ चाहिए,
आपकी, रजा में मेरी रजा चाहिये और
इस मासूम पर आपका फजल चाहियेl
रब बहुत खुशी से,
गले लगे दो फ़क़ीर से l
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