अंकुर महाजन
ऐ सुनो यहाँ आओ,
देखो में तुम्हे बुला रहा हूँ,
में आक्रोश हूँ, में अंगार हूँ,
में बदला हूँ, में जिहाद हूँ,
में ऐ कश्मीर तुम्हारी आवाज़ हूँ,
तुम गुलाम कश्मीर, में आज़ाद हूँ,
सुनो मेरे भाईजान, में तुम्हारा बुरहान हूँ।
छोटा सा था जब में,
मुझे इस्लाम पढ़ाया गया,
मुझे जिहाद सिखाया गया,
मुझे कहा यह काफिर हिन्दुस्तान है,
मेरा देश यह कश्मीर पाकिस्तान है,
सुनो भाईजान यह सब कह रहा तुम्हारा बुरहान है।
बड़ा हुआ तो कहा लो हथियार, जीत लो आज़ादी,
करदेगा यह हिंदुस्तान, हमारे कश्मीर की बर्बादी,
मैंने भी हथियार उठा लिया,
कफ़न जिहाद का सिर पे था बांध लिया,
कहा था मुझसे, अल्लाह मेरी क़ुरबानी इ नाज़ रखेगा,
मुझे शहादत का तज बख्शेगा,
में क़ुर्बान हुआ अपने इस्लाम के लिए,
कश्मीर और क्षीर की अवाम के लिए।
लो आज बुरहान फिर लौट आया है,
अल्लाह का फरमान उसी की मज़ार से लाया है,
अल्लाह कहता है,
इस्लाम हमेशा अमन चाहता है,
इस्लाम आतंकवाद नहीं जिहाद पढ़ता है,
जिहाद खुद से बैर मिटने को,
जिहाद ज़माने से बुराई हटाने हो,
जिहाद इस्लाम को बचाने को,
इस्लाम बंदूक नहीं, सजदे में हाथ उठाना है,
इस्लाम नफरत नहीं, ज़माने में महोब्बत फैलाना है।
सुनो भाईजान तुम्हारा बुरहान तुम्हे बुला रहा है,
तुम्हे अल्लाह का फरमान सुना रहा है,
अल्लाह कहता है,
आओ अब मिलकर हाथ बढ़ाते हैं,
नफरत नहीं, भाईचारे से कश्मीर आबाद बनाते हैं,
आओ अब बंदूक नहीं, मिलकर हल उठाते हैं,
फिर से दल के आँचल में एक नया कमल खिलते हैं,
आओ एक ऐसा क्षीर बनाते हैं,
यहाँ भागूं में फिर केसर उगाया जायेगा,
यहाँ चूल्हे पे फिर शिर कोरमा बनाया जायेगा,
और हर ईद पे सबको दावत पे बुलाया जायेगा।
सुनो भाईजान अब नया क्षीर बनाएंगे,
आतंकवाद का नाम-ओ-निशान मिटायेंगे,
चैन-ओ-अमन का तिरंगा फिरसे लाल चौक में लहरायेंगे,
फिरसे कश्मीर को भारत का ताज बनाएंगे,
सुनो भाईजान, कहो मुझसे,
ना हम कभी फिर से कोई बुरहान बनाएंगे,
न हम फिर कोई बुरहान बनाएंगे।
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