प्रिन्स रोहित Prince Rohit
कविता एक सैनिक का एक आग्रह है, कश्मीर घाटी के उन युवाओं के लिए एक आह्वान है जिन्हें धर्म के नाम पर हिंसा में धकेला गया है। इस संदर्भ में मानवता और भाईचारे को भुला दिया जाता है। कवि कश्मीरी युवाओं की आँखों को वास्तविकता से,शांति के लिए खोलने का प्रयास करता है।
The poem is an urge by a soldier, a call to the youth of Kashmir valley who has been manipulated into violence in name of religion. Humanity and brotherhood are forgotten in this context. The poet's attempts to open eyes of Kashmiri youth to reality, to peace.
बर्बरता का दामन छोड़ दे
शांति के संग नाता जोड़ दे...
सौ बार तुजे बतलाया है
निर्बल जान कर समझाया है
मैत्री की भाषा तुजे समझ ना आती है
शांति तुजे रास ना आती है
रह रह कर मुझे खरोंचता है
चुप रह कर सहूंगया ये सोचता है
रूप ने मेरा अब तक जाना है
तूने मुझे अभी भी कहाँ पहचाना है
हूँ वही मैं जिसने ७१ में तुझको काटा था
था अयोग्य तू इस लिए ही तुझको बांटा था
विकराल रूप जब जब मैंने जब अपनाया है
तुझको रन धुल चटाया है...
यदि युद्ध के लिए मुझे फिर उकसाया गा
काल तुझी पर ही छायेगा
हो गई परलय अन्धकार में तू समाये गा
अंश न बाकि तेरा कोई रह जायेगा
नभ से तुझ पर जवाला जब बरसेगी
रक्त से भूमि सींचे गई
आह्वान मेरा तू जान ले
हूँ बलवान मैं ये मान ले
समय रहते
बर्बरता का दामन छोड़ दे
शांति के संग नाता जोड़ ले...
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