GS Arora
हर शाम उठता है धुआँ मेरे घर से ,
उम्मीद को हर रोज कमा तो लेता हूँ,
मगर बदहाल बहुत है I
जोर ए आजमाइश हर रोज होती है किस्मत से,
हर मसला हल भी हो जाता है यहाँ,
मगर सवाल बहुत है I
कभी कहवे की चुस्की से तो कभी वाजवान के जायके से,
गैरो का जी भी बहलाता हूँ,
मगर अपनों का ख्याल बहुत है I
हरसू वादियों से भरा है मेरा दामन ,
रंग भी बेहद है मेरे अंदर ,
मगर खून से लाल बहुत है I
भाईचारे और अमन की दुहाई कई ज़माने से सुनता आया हूँ,
राहें हमेशा सीधी ही रही है मेरी,
मगर हर कदम पे जाल बहुत है I
हर रोज वही खौफ के मंजर में जीते है मेरे लोग,
सुलझा भी जाते मसले कोई चाहे अगर शिददत से,
मगर सियासी चाल बहुत हैं I
सैतालिस, पैसठ, इकहत्तर, निन्यानवे,
किस किस मंजर का नाम लू,
मुझ पर हक़ जता के,
अपना मुनाफा करने वालो की मिसाल बहुत हैं I
थक चुकी है रूह मेरी इस दहशतगर्दी के आलम से,
बेफिक्र होकर सोना तो मैं भी चाहता हूँ ,
मगर मलाल बहुत हैं I
ये जिंदगी भी मेरी तरह ही तो है,
खूबसूरत तो बहुत है,
मगर बवाल बहुत हैं I
Comentarios