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Writer's pictureNasreen Khan

इंकलाबी तब्दीली

नसरीन खान
कवयित्री अपनी कविता में कश्मीर घाटी के विवादास्पद और अस्थिर पहलुओं को छूती है। खुद  एक कश्मीरी महिला होने के नाते, उनका दृष्टिकोण कश्मीर की आकांक्षाओं पर एक नया प्रकाश डालता है।

The poetess touches controversial and volatile aspects of Kashmir valley in her poem. Herself being a Kashmiri woman, her perspective brings a new light on aspirations of Kashmir.

 
Kashmiri muslim Woman as poetess
The poetess looks upon future of Kashmir while basking in sun amidst colours of Kashmir's Autumn.

आते हैं आँसू इन नाखुश हादसों पर

बहस होती है यहाँ हुए मसलों पर

शर्म नहीं है देखकर ज़ख़्मी होती ज़मी पर

यहाँ के बेटे हो गए गुमराह इनके कहने पर।


और खेल रहे है जन्नत से हुर्रियत के बहकावे पर

जिनकी नाक टिकी रहती है दहशतगर्दी के जूतों पर

कश्मीर को बटवारे का धंधा बना रहे हैं वो

जुगनू को बैसाखी देकर चंदा बना रहे हैं वो।




भूखे हैं वो बस नोटों के थैलों के

पढ़ रहे हैं जिनके बच्चे गैरमुल्क़ों में

वादी को बनाकर आंगन खूनी खेलों का

आज ज़रुरत है हमें उठने का और जागने का।


तो केवल ज़रुरत है हिम्मत की खुद्दारी की

खिलाफ हो जाएँ पड़ोसियों के रखवालों की

बहुत हो गया बंद करो खुद को बिच्छू से कटवाना

पत्थर की आँखों में आँसू कभी नहीं मिलने वाला।


कोई ज़हरीला अमन के बीज बो नहीं सकता

अय्याशियों में रहने वाला हमारे दर्द समझ नहीं सकता

फूल अमन के नहीं खिलते हैं इन बुज़दिल जानों में

जेब भरे बैठे हैं ये अपने महलों में।


बच्चों की मुस्कुराहट के दुश्मन बने बैठे हैं ये

कश्मीर में दहशतगर्दी की वजह बने बैठे हैं ये

जिनके कारण पूरी रियासत जली दुल्हन सी लगती है

फूलों वाली रात चाँद ग्रहण सी लगती है।


तो वक्त बदलना सीखो इनसे बेख़ौफ़ जीने का

कोहराम भरी रातों को अब ढलने देने का

ख्वाबों में ही रह जाएँगे अब जेबे भरने वाली

क्योंकि कश्मीर इनके अब्बा की जांगीर नहीं होने वाली ।

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